- संस्कृत में 1 से 100 तक गिनती लिखें व याद करें.
- राम, बालक, बालिका , फल के रूप याद करें व लिखें .
- भू, पठ्, लिख्, गम् , खाद् के रूप पांच लकारों में लिखें व याद करें .
- आमोदिनी के पाठ-1 से पाठ 3 के शब्द-अर्थ , व प्रश्न-उत्तर याद करें .
- पुस्तक के अंत में दिए गये शब्दकोष को लिखें व याद करें.
- नीचे पृष्ठ के अन्त में दिये गये चित्र में से कोई चित्र चार्ट में बनाएं.
कक्षा-11
- संस्कृत में 1 से 100 तक गिनती लिखें व याद करें.
- राम, बालक, बालिका , फल, अस्मद्, युष्मद्,किम् शब्दों के रूप याद करें व लिखें .
- भू, पठ्, लिख्, गम् , खाद् के रूप पांच लकारों में लिखें व याद करें .
- संधि,समास, कारक, उच्चारण स्थान, वर्णवियोजन,समय लेखन,वाच्य, याद करें व लिखें. इस ब्लॉग में भी दिए गये हैं .
- अपठित गद्यांश,पत्रलेखन,संवाद 5-5 अभ्यास करें.
- नीचे पृष्ठ के अन्त में दिये गये चित्र में से कोई चित्र चार्ट में बनाएं.
कक्षा-12
- राम, बालक, बालिका , फल, अस्मद्, युष्मद्,किम् शब्दों के रूप याद करें व लिखें .
- भू, पठ्, लिख्, गम् , खाद् के रूप पांच लकारों में लिखें व याद करें .
- भास्वती के पाठ-1 से पाठ-2 के प्रश्न-उत्तर याद करें .
- संधि,समास, कारक, वाच्य, याद करें व लिखें. इस ब्लॉग में भी दिए गये हैं .
- अपठित गद्यांश,पत्रलेखन,संवाद 5-5 अभ्यास करें.
- नीचे पृष्ठ के अन्त में दिये गये चित्र में से कोई चित्र चार्ट में बनाएं.
चार्ट में बनाने हेतु चित्र-----
लट् लकार (वर्तमान काल) (गम् धातु = जाना) का प्रयोग
प्रथम पुरुष
(1) सः गच्छति। वह जाता है।
(2) तौ गच्छतः। वे दोनों जाते हैं।
(3) ते गच्छन्ति । वे सब जाते हैं।
(1) सः गच्छति। वह जाता है।
(2) तौ गच्छतः। वे दोनों जाते हैं।
(3) ते गच्छन्ति । वे सब जाते हैं।
मध्यम पुरुष
(4) त्वं गच्छसि । तुम जाते हो।
(5) युवां गच्छथः। तुम दोनों जाते हो।
(6) यूयं गच्छथ। तुम सब जाते हो।
(4) त्वं गच्छसि । तुम जाते हो।
(5) युवां गच्छथः। तुम दोनों जाते हो।
(6) यूयं गच्छथ। तुम सब जाते हो।
उत्तम पुरुष
(7) अहं गच्छामि मैं जाता हूँ।
(8) आवां गच्छावः। हम दोनों जाते हैं।
(9) वयं गच्छामः। हम सब जाते हैं।
(7) अहं गच्छामि मैं जाता हूँ।
(8) आवां गच्छावः। हम दोनों जाते हैं।
(9) वयं गच्छामः। हम सब जाते हैं।
संस्कृत-सूक्ति-
नास्ति बुद्धिमतां शत्रुः ॥
बुद्धिमानो का कोई शत्रु नहीं होता ।
विद्या परमं बलम ॥
विद्या सबसे महत्वपूर्ण ताकत है ।
सक्ष्मात् सर्वेषों कार्यसिद्धिभर्वति ॥
क्षमा करने से सभी कार्ये में सफलता मिलती है ।
न संसार भयं ज्ञानवताम् ॥
ज्ञानियों को संसार का भय नहीं होता ।
वृद्धसेवया विज्ञानत् ॥
वृद्ध - सेवा से सत्य ज्ञान प्राप्त होता है ।
सहायः समसुखदुःखः ॥
जो सुख और दुःख में बराबर साथ देने वाला होता है सच्चा सहायक होता है ।
आपत्सु स्नेहसंयुक्तं मित्रम् ॥
विपत्ति के समय भी स्नेह रखने वाला ही मित्र है ।
सत्यमेव जयते ॥मित्रसंग्रहेण बलं सम्पद्यते ॥
अच्छे और योग्य मित्रों की अधिकता से बल प्राप्त होता है ।
सत्य अपने आप विजय प्राप्त करती है ।
उपायपूर्वं न दुष्करं स्यात् ॥
उपाय से कार्य कठिन नहीं होता ।
विज्ञान दीपेन संसार भयं निवर्तते ॥
विज्ञानं के दीप से संसार का भय भाग जाता है ।
सुखस्य मूलं धर्मः ॥
धर्म ही सुख देने वाला है ।
धर्मस्य मूलमर्थः ॥
धन से ही धर्म संभव है ।
विनयस्य मूलं विनयः ॥
वृद्धों की सेवा से ही विनय भाव जाग्रत होता है ।
अलब्धलाभो नालसस्य ॥
आलसी को कुछ भी प्राप्त नहीं होता ।
आलसस्य लब्धमपि रक्षितुं न शक्यते ॥
आलसी प्राप्त वस्तु की भी रक्षा नहीं कर सकता ।
सुभाषितानि
अग्निशेषमृणशेषं शत्रुशेषं तथैव च । पुन: पुन: प्रवर्धेत तस्माच्शेषं न कारयेत् ॥
यदि कोई आग, ऋण, या शत्रु अल्प मात्रा अथवा न्यूनतम सीमा तक भी अस्तित्व में बचा रहेगा तो बार बार बढ़ेगा ; अत: इन्हें थोड़ा सा भी बचा नही रहने देना चाहिए । इन तीनों को सम्पूर्ण रूप से समाप्त ही कर डालना चाहिए ।
नाभिषेको न संस्कार: सिंहस्य क्रियते मृगैः । विक्रमार्जितराज्यस्य स्वयमेव मृगेंद्रता ॥
वन्य जीव शेर का राज्याभिषेक (पवित्र जल छिड़काव) तथा कतिपय कर्मकांड के संचालन के माध्यम से ताजपोशी नहीं करते किन्तु वह अपने कौशल से ही कार्यभार और राजत्व को सहजता व सरलता से धारण कर लेता है
उद्यमेनैव हि सिध्यन्ति,कार्याणि न मनोरथै। न हि सुप्तस्य सिंहस्य,प्रविशन्ति मृगाः॥
प्रयत्न करने से ही कार्य पूर्ण होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं, सोते हुए शेर के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते हैं।
विद्वत्वं च नृपत्वं च न एव तुल्ये कदाचन्। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥
विद्वता और राज्य अतुलनीय हैं, राजा को तो अपने राज्य में ही सम्मान मिलता है पर विद्वान का सर्वत्र सम्मान होता है|
पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम् । मूढै: पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा प्रदीयते ॥
पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं जल अन्न और अच्छे वचन । फिर भी मूर्ख पत्थर के टुकड़ों को रत्न कहते हैं ।
पातितोऽपि कराघातै-रुत्पतत्येव कन्दुकः। प्रायेण साधुवृत्तानाम-स्थायिन्यो विपत्तयः॥
हाथ से पटकी हुई गेंद भी भूमि पर गिरने के बाद ऊपर की ओर उठती है, सज्जनों का बुरा समय अधिकतर थोड़े समय के लिए ही होता है।
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियं। प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः॥
सत्य बोलें, प्रिय बोलें पर अप्रिय सत्य न बोलें और प्रिय असत्य न बोलें, ऐसी सनातन रीति है ॥
मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचनं तथा। क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः॥
मूर्खों के पाँच लक्षण हैं - गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों का अनादर॥
अतितॄष्णा न कर्तव्या तॄष्णां नैव परित्यजेत्। शनै: शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जितम् ॥
अधिक इच्छाएं नहीं करनी चाहिए पर इच्छाओं का सर्वथा त्याग भी नहीं करना चाहिए। अपने कमाये हुए धन का धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिये॥